एक रिसर्च में दावा किया गया है कि 60 साल की उम्र से पहले टाइप 2 डायबिटीज का होना पुरानी में डिमेंशिया के खतरे को दोगुना कर सकता है। टाइप 2 डायबिटीज को अक्सर मोटापे से जोड़ा जाता है। मोटापा एक ऐसी अवस्था है जिसमें वजन बढ़ने की वजह से आपके शरीर में बदलाव आता है और अन्य रोगों को जगह भी मिलती है। इस बीमारी में अत्यधिक मात्रा में चर्बी में आपके शरीर में जमा होना शुरू हो जाता है। टाइप 2 डायबिटीज को काफी हद तक रोका जा सकता है।
60 साल से पहले टाइप 2 डायबिटीज के असर का खुलासा
पेरिस यूनिवर्सिटी के रिसर्च में पता चला कि अनियंत्रित ग्लूकोज शुगर लेवल और दिमाग में इंसुलिन डिमेंशिया के विकास की दिशा में योगदान कर सकता है। पहले से ही डायबिटीज और वैस्कुलर डिमेंशिया, बीमारी की एक आम किस्म के बीच ज्ञात संबंध है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये मस्तिष्क तक रक्त की आपूर्ति करने वाली वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाती है और ऑक्सीजन के प्रवाह को रोकती है। फ्रांसीसी वैज्ञानिकों ने पाया कि 70 साल की उम्र में डिमेंशिया दोगुना हो जाता है अगर कोई में 10 साल पहले डायबिटीज की पहचान हुई हो।
उन्होंने बताया कि टाइप 2 डायबिटीज और डिमेंशिया के बीच चिह्नित संबंध का सटीक तंत्र स्पष्ट नहीं है। इसके अलावा रिसर्च डायबिटीज और अल्जाइमर की बीमारी का नमूना के बीच निरंतर संबंध हमेशा नहीं दिखाता है। वैज्ञानिकों ने संबंध का एक संभावित कारण यह बताया है कि मस्तिष्क तक इंसुलिन पहुंचता है। इसका मतलब हुआ कि ऊर्जा के लिए ग्लूकोज शुगर का इस्तेमाल करने में कम सक्षम है क्योंकि डायबिटीज के मरीजो की पर्याप्त मात्रा में पैदा नहीं करते हैं। दिमाग ग्लूकोज का इस्तेमाल अपने सामान्य तंत्र के काम को ऊर्जा देने और स्वस्थ कोशिकाओं को बहाल करने के लिए करता है, और उसकी कमी से अंग को नुकसान पहुंच सकता है।
70 साल की उम्र में डिमेंशिया का होता है डबलना-रिसर्च
शोधकर्ताओं ने बताया कि हाई ब्लड शुगर होने पर दिमाग बहुत ज्यादा ग्लूकोज अवशोषित करता है। बड़ी मात्रा में ग्लूकोज को जहरीला जाना जाता है और इन नसों और रक्त वाहिकाओं को भी नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए डायबिटीज के मरीजों का पांव सुन्न हो सकता है। दिमाग की नसों या ब्लड आपूर्ति का नुकसान बढ़ सकता है जिससे डिमेंशिया होने का खतरा रहता है। रिसर्च के नतीजे को जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित किया गया है।
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